Monday, July 14, 2008

होंसला : the encourage



मेढकों का एक झुण्ड जंगल में घुमने निकला |सैर करते -करते दो मेढ़क एक गहरे गड्ढे में गिर गये |बाहर खड़े उनके दोस्तों ने गड्ढे में झाका | उन्हें लगा की कितनी भी कोशिश क्यो न की जाए ,उनका बाहर निकल पाना नामुमकिन है | वे गड्ढे में फसे मेढकों से कहने लगे की हाथ -पैर मारने का कोई फायदा नही ,तुम किसी भी कीमत पर नही बच पाएंगे | वह गड्ढा उनके लिए मोंत का गड्ढा साबित होगा | दोनों मेढकों ने उन्हें अनसुना कर दिया और बाहर निकलने की भरसक कोशिश करते रहे |बाहर से झाकते मेढ़क उनके न बच पाने की बात दोहराते जा रहे थे | आखिरकार एक मेढ़क निराश हो गया उसने बाहर निकलने की आस छोड़ दी और मर गया |
दूसरा मेढ़क अब भी बाहर निकलने की कोशिश में बराबर जुटा था | कुछ देर बाद वह गड्ढे से बाहर था | बाहर निकलते ही उसने सबसे पहले अपने मित्रो को धन्यवाद दिया |मेढ़क कुछ समझ नही पाए | उसने उन्हें बताया कि वह बहरा है और जब वह बाहर आने के लिए लड़ रहा था तब उन्हें सुन तो नही पा रहा था | लेकिन वह भलीभाति समझ रहा था कि वे सब उसे बाहर आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे ..


सबक - आपके मुह से निकले शब्द किसी का होंसला बुलंद या पस्त कर सकते है इसलिए हमेशा सकारात्मक बोले

1 comment:

Anonymous said...

इतनी अच्छी बात मैंने बोहत कम ही सुनी है..........बोहत हे अच्छी प्रेरणादायक कहानी है..........धन्यवाद!!